शर्म भी,
अब बाजार का खेल है.
जितनी महंगी होती हैं,
तुम्हारे दूकान की चीजें।
उतना ही शर्म लेकर वो,
तुम्हारे दूकान पे मुस्काराती हैं.
परमीत सिंह धुरंधर
शर्म भी,
अब बाजार का खेल है.
जितनी महंगी होती हैं,
तुम्हारे दूकान की चीजें।
उतना ही शर्म लेकर वो,
तुम्हारे दूकान पे मुस्काराती हैं.
परमीत सिंह धुरंधर