तेरे साथ की


मुझे जो कभी समझा ही नहीं वो रातें तेरे साथ की,
घड़ी-घड़ी याद आती है वो बातें तेरे साथ की.
समुन्दर बन गया है दर्द मेरा बढ़ – बढ़ के,
फिर भी मिट नहीं सकती वो चाहत तेरे साथ की.
होठ चाहे तेरे, जिसका भी जिस्म चुम लें,
मेरे ओठों को बस प्यास है आज भी तेरे सांस की.
घड़ी-घड़ी याद आती है वो बातें तेरे साथ की.

परमीत सिंह धुरंधर

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