बाबुल तुझसे दूर जा रही है,
तेरी लाड़ली अनजान बनके।
नए धागों में ही बांधना था,
तो क्यों संभाला था दिल में?
अपनी जान बोलके।
मैं हंसती थी, तो तुम हँसते थे.
मैं रोती थी, तो तुम रोते थे.
रिश्ता था अगर वो सच्चा,
तो क्यों बाँट दिया आँगन?
मुझे अपना सौभाग्य बोलके।
अब किससे दिवाली पे तकरार होगी?
रूठ कर किसपे प्रहार करुँगी?
याद आवोगे जब इन आंशुओं में,
तो किसके सीने से दौड़ के लगूंगी?
अगर मैं हूँ खून तुम्हारा,
तो क्यों सौंप रहे हो गैरों को?
अपनी शान बोलके।
परमीत सिंह धुरंधर
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